PROGRAMMING LANGUAGES


PROGRAMMING LANGUAGES

Programming Language: - प्रोग्राम्मिंग लेंग्वेज वह होती हैं जो user (programmer) तथा computer के बीच communication provide करवाती हैं ! अथवा programming languages वे होती हैं जो user तथा computer के बीच information के आदान प्रदान के लिए एक माध्यम provide करवाती हैं! इन प्रोग्राम्मिंग लैंग्वेजस के अन्तरगत कई कोड्स तथा स्टेटमेंट का यूज किया जाता हैं जिनका अपना एक meaning होता हैं |


Program:- प्रोग्राम स्टेटमेंट का समूह होता हैं! (program is a set of statement or set of instruction )


सामान्य शब्दों में  कहा जाये तो कंप्यूटर द्वारा किसी प्रोबलम को सोल्व करने के लिए कुछ सेट ऑफ स्टेटमेंट का यूज किया जाता हैं जिन्हें सम्मिलित रूप से प्रोग्राम कहते हैं

Programmer:- प्रोग्राम जिसके द्वारा बनाये जाते हैं उसे प्रोग्रामर कहा जाता हैं!

program computer द्वारा किसी problem को solve करने के लिए बनाये जाते हैं !
या  program  किसी particular task अथवा किसी particular  problem को solve करने के लिए बनाये जाते है


languages निम्न प्रकार की होती हैं :-
1 MACHINE Language  
2 ASSEMBLY Language
3 HIGH LEVEL Language

1. Machine language
machine language को 1st generation language भी कहते हैं| प्रारम्भ(initial time) में बनाये जाने वाले प्रोग्राम मशीन लेंग्वेज में ही बनाये जाते थे| मशीन लेंग्वेज में बनाये जाने वाले सभी प्रोग्राम binary language अर्थात 0 तथा 1 की फॉर्म में लिखे जाते थे|
आरम्भिक computers में सभी program machine code में लिखे जाते थे जिसका विकास उन computers के निर्माताओ द्वारा किया गया था|
इन प्रोग्राम्स की speed बहुत तेज होती थी क्यूंकि इन प्रोग्राम्स को मशीन कोड में ही लिखा जाता था|अर्थात machine language में 0 तथा 1 के रूप में प्रोग्राम्मिंग की जाती हैं और कंप्यूटर भी यही भाषा समझता हैं इसलिए इन प्रोग्राम्स की speed काफी तेज होती हैं अर्थात मशीन लेंग्वेज में लिखे programs काफी तेज गति से रन होते हैं|

machine language में प्रोग्रम्मिंग करने के लिए programmer को उस machine की internal structure(संरचना) का ज्ञान होना जरुरी होता हैं जिस पर वह प्रोग्राम बना रहा हैं
क्यूँ की प्रत्येक computer की अपनी machine language होती थी जो उसकी इंटरनल structure पर आधारित होती थी यदि उस सिस्टम पर कोई प्रोग्राम लिखना होता था तो प्रोग्रामर को उस सिस्टम की मशीन लैंग्वेज की पूरी जानकारी होना आवश्यक होता था|
तथा इस language में प्रोग्रामर को प्रत्येक कंप्यूटर के लिए अलग से प्रोग्राम लिखना होता था जो एक जटिल काम था तथा प्रत्येक machine के लिए अलग अलग machine  कोड को भी याद रखना पड़ता था अतः machine language में program बनाना बहुत ही मुश्किल काम होता था|

2 Assembly Language :-
machine languag का use करने पर उसमें आने वाली प्रोब्लेम्स को देखते हुए सन् 1950 में machine language में सुधार करके जो नई language develop की गई उसे assembly language कहा जाता हैं|
इस language में कंप्यूटर के erthmetic तथा logical दोनों प्रकार के work करने के लिए कुछ simbles का use किया जाने लगा इस language में data address के लिए भी simbles का use किया गया| easily याद किये जाने वाले इन simbles का use करने के कारण यह  language machine language की तुलना में अत्यंत सरल हो गयी|
Assembly language में operator के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिन्हों तथा शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं| इन चिन्हों तथा शब्दों को निमोनिक कोड(Mnemonic code) कहते हैं|
Assembly language में programming करने के लिए programmer को machine के internal structure का ज्ञान होना आवश्यक नहीं होता इसलिए Assembly language me programming करना machine language की तुलना में आसान होता है|

चूँकि computer केवल machine language ही समझता हैं इसलिए Assembly language को machine language में translate करना पड़ता था| जिसके लिए कुछ special program का use किया जाता था| जिसे assembler कहते हैं|

3. High Level Language :-
Assembly language में programming करना machine language की तुलना में आसान था लेकिन फिर भी assembly language में program बनाना इतना आसान नहीं था| इसलिए सन 1960 के आस पास ऐसी programming language develop की गई जिसमे किसी प्रोग्राम को सामान्य english language में ही बनाया जा सकता था|

अर्थार्त high level language में सामान्यत इंग्लिश language में लिखे निर्देशों(commands) का use किया जाता हैं| जिसके कारण ये language अत्यंत सरल हो जाती हैं|

यह language programs पर आधारित होती हैं, तथा मशीनी structure से मुक्त होती हैं इसलिए इसको high level laguage कहा जाता हैं|

चूँकि high level language में program सरल अंग्रेजी भाषा में ही बनाये जाते हैं| अतः इसमें programming करना तथा program में रह गई गलतियों को ढूंढकर ठीक करना(debugging) machine language तथा assembly language की तुलना में काफी आसान होता है|
high level language में लिखे प्रोग्राम को मशीन language में translate करना होता हैं जिसके लिए compiler या interpreter  का प्रयोग किया जाता हैं|
सबसे पहली हाईलेवल लैंग्वेज FORTRAN हैं| इसके बाद कई HIGH LEVEL Languages Develop की गई जैसे:- COBOL, Basic,Pascal,etc.

C,C++,JAVA आदि भी High level language के ही उदाहरण हैं|

OLED की तकनीक


OLED की तकनीक
जाने टीवी की TECHNOLOGY में OLED तकनीक का क्या महत्व हैं |

OLED का मतलबऑर्गेनिक लाइट एमिटिंग डायोड होता हैं | यह ऑर्गेनिक कंपाउंड्स की बनी होती हैं जो लाइट को रोशनी में बदल देती हैं | LED और LCD से ये इसलिए अलग हैं, क्यूंकि इसमे किसी अलग LIGHT के सोर्स की जरुरत नहीं पड़ती | हर PIXEL अपनी लाइट खुद तैयार करता हैं | इस तरह पूरा OLED पैनल स्लिम, हल्का और फ्लेक्सिबल होता हैं | LG की 55 इंच की कर्व्ड OLED के मार्केट में आने के बाद OLED को तकनीक में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा हैं | OLED पैनल अनलिमिटेड (अनंत) कॉन्ट्रास्ट रेश्यो ऑफ़र करता हैं | आम तौर पर कॉन्ट्रास्ट रेश्यो स्क्रीन की क्वालिटी तय करने के लिए काम में लिया जाता हैं | यह सबसे हल्के तथा सबसे गहरे पिक्सल की ब्राइटनेस का अंतर बताता हैं | OLED के मामले में हर पिक्सल को अलग – अलग कण्ट्रोल किया जा सकता हैं | इसमे इनएक्टिव पिक्सल पॉवर कंज्यूम नहीं करते | अगर आप डार्क सीन वाली कोई मूवी देख रहे हैं तो इसमे कम पॉवर कंज्यूम होगी |

एक फोन में चलायें whatsapp के दो अकाउंट-


एक फोन में चलायें whatsapp के दो अकाउंट-
आपके पास ड्यूल सिम एंड्राइड फ़ोन हैं और दोनों ही नंबर्स लोगो के बिच डिस्ट्रीब्यूट किये गए है | ऐसे में आप चाहते है कि इस पर whatsapp जैसा लोकप्रिय काम का app दोनों नंबर्स के साथ ही काम करें |
whatsapp सीधा आपको ऐसी सुविधा नहीं देता | आप एक नंबर से दुसरे नंबर पर स्विच तो कर सकते हैं, लेकिन दुसरे नंबर पर जाने के लिए आपको पहले नंबर को हटाना होता है | अब कुछ app’s इस तरह की सुविधा भी उपलब्ध करा रहे है, जो आपको दोनों नंबर्स पर whatsapp इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं |
नीचे दिए गए तरीके को आजमाने से पहले फोन पर अपने whatsapp अकाउंट के मैसेज और डाटा का फुल बैकअप लेना नहीं भूले, क्योंकि इसमें आपको अपने मौजूदा app का डेटा डिलीट करने की जरुरत होती है |
बैकअप लेने की सुविधा आपको whatsapp की चैट सेटिंग में मिलेगी |
एंड्राइड फ़ोन पर यूँ चलाये दो whatsapp अकाउंट –
बैकअप लेने के बाद अपने whatsapp का डाटा clear कर दे | अब आप /sdcard/WhatsApp फोल्डर में जाकर इसे रीनेम करे और इसका नाम OGWhatsApp कर दे |
अब ऑफिशियल whatsapp को uninstall कर दे और उसके बाद फोन पर यह app डाउनलोड करें  -
http://ogwhatsapp.en.uptodown.com/android यह आपसे नंबर पूछेगा | इसे वह पुराना नंबर दीजिये, जिसे अभी तक आप whatsapp पर इस्तेमाल करते थे | इसके बाद प्ले स्टोर से ऑफिशियल whatsapp download करे और इसे नए नंबर से activate करे | इस तरह अब आप एक फ़ोन पर दो whatsapp अकाउंट use कर पाएंगे |

GOOGLE Chrome ब्राउज़र में ऑफलाइन देखें वेब पेज -


GOOGLE Chrome ब्राउज़र में ऑफलाइन देखें वेब पेज -

कई बार इन्टरनेट की सुविधा नहीं होने पर भी हमें ऐसे वेब पेज देखने की जरुरत होती हैं, जिन्हें हम पहले इन्टरनेट कनेक्टिविटी के दौरान देख चुके होते हैं | मसलन GMAIL, या FACEBOOK के मैसेज या विकिपीडिया पर किसी विषय पर जानकारी | प्लेन में यात्रा के दौरान भी इन्टरनेट कनेक्टिविटी नहीं होने पर आप google chrome ब्राउज़र पर पहले visit की जा चुकी वेबसाइट या सामग्री को नहीं देख सकते | जब हम हिस्ट्री (history) में जाकर इस तरह के वेब पेजेज पर क्लिक करते हैं तो वंहा हमें एक डायनासोर के icon के साथ पेज न खुल पाने का message दिखाई देता हैं | google chrome ब्राउज़र में ऐसी कोई प्रत्यक्ष सेटिंग भी नहीं हैं जिसके जरिये हम ब्राउज़र को offline रीडिंग के लिए तैयार कर सके | लेकिन एक साधारण सी ट्रिक अपना कर हम ऐसा कर सकते हैं |

यूँ करे chrome ब्राउज़र पर offline रीडिंग
इसके लिए सबसे पहले google chrome वेब ब्राउज़र को open कीजिये और एड्रेस बार में निम्न वाक्य टाइप कीजिए –
chrome://flags/#enable-offline-mode
और enter करने के बाद आपको enable offline auto reload mode विकल्प दिखाई देगा, जो डिफ़ॉल्ट पर सेट होगा | आप यंहा से ऐसे enable कर सकते हैं | इसके बाद आप chrome ब्राउज़र को बंद(close) कर फिर से open कीजिये | अब आप जो भी पेज खोलेंगे उन्हें बाद में बिना इन्टरनेट connection के भी देख सकेंगे | इस तरह जब आप कनेक्टिविटी से बाहर होने वाले हों, तो पहले से ही अपने काम की वेबसाइट open कर अपने खाली समय का सदुपयोग किया जा सकता हैं |`

OLED की तकनीक


OLED की तकनीक
जाने टीवी की TECHNOLOGY में OLED तकनीक का क्या महत्व हैं |

OLED का मतलबऑर्गेनिक लाइट एमिटिंग डायोड होता हैं | यह ऑर्गेनिक कंपाउंड्स की बनी होती हैं जो लाइट को रोशनी में बदल देती हैं | LED और LCD से ये इसलिए अलग हैं, क्यूंकि इसमे किसी अलग LIGHT के सोर्स की जरुरत नहीं पड़ती | हर PIXEL अपनी लाइट खुद तैयार करता हैं | इस तरह पूरा OLED पैनल स्लिम, हल्का और फ्लेक्सिबल होता हैं | LG की 55 इंच की कर्व्ड OLED के मार्केट में आने के बाद OLED को तकनीक में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा हैं | OLED पैनल अनलिमिटेड (अनंत) कॉन्ट्रास्ट रेश्यो ऑफ़र करता हैं | आम तौर पर कॉन्ट्रास्ट रेश्यो स्क्रीन की क्वालिटी तय करने के लिए काम में लिया जाता हैं | यह सबसे हल्के तथा सबसे गहरे पिक्सल की ब्राइटनेस का अंतर बताता हैं | OLED के मामले में हर पिक्सल को अलग – अलग कण्ट्रोल किया जा सकता हैं | इसमे इनएक्टिव पिक्सल पॉवर कंज्यूम नहीं करते | अगर आप डार्क सीन वाली कोई मूवी देख रहे हैं तो इसमे कम पॉवर कंज्यूम होगी |

COMPUTER VIRUS


COMPUTER VIRUS


    वायरस ऐसा कम्प्यूटर प्रोग्राम हैं जो खुद को कॉपी करता हैं | यह एक फाइल से दूसरी फाइल में और एक कम्प्यूटर से दुसरे कम्प्यूटर में फैलता हैं | removeble device (पेन ड्राइव, मेमोरी कार्ड) से एक device से दुसरे device तक पंहुच जाता हैं | अथवा मैलवेयर फाइल को डाउनलोड करने से भी ये हमारे कंप्यूटर में आ जाता हैं |

    मैलवेयर – मैलवेयर और वायरस दोनों अलग – अलग टर्म हैं |
    मैलवेयर जनरल टर्म हैं जिसका मतलब होता हैं मेलिशस सॉफ्टवेयर
यानि कोई भी चीज जो आपके PC को नुकसान पंहुचा दे |
मैलवेयर में वायरस, ट्रोजन हॉर्सेज, स्पाईवेयर, स्केरवयेर आदि शामिल
होते हैं |

स्पाईवेयर – स्पाईवेयर ऐसा सॉफ्टवेयर हैं जो कम्प्यूटर पर इंस्टाल होता हैं,
और सूचनाएं इकट्ठा करके सॉफ्टवेयर को बनाने वाले के पास भेजता हैं |
यह पर्सनल सूचनाएं चुराता हैं |

Text Box:     एंटीवायरस – एंटीवायरस एक ऐसा सॉफ्टवेयर 
    प्रोग्राम हैं जो किसी भी मैलवेयर को कंप्यूटर में आने से रोकता हैं | एंटीवायरस कंप्यूटर में पहले से मोजूद वायरस इन्फेक्टेड फाइल्स को ढूंढ़कर उन्हें डिलीट भी करता हैं | अगर कंप्यूटर में मैलवेयर आ गया हैं तो उसका पता लगाना और उसे वंहा से हटाना भी एंटीवायरस का काम हैं | आजकल मार्केट में कई एंटीवायरस उपलब्ध हैं | जैसे – AVG, नेट्स्केप NEVIGATOR, AVASTH, QUICKHEAL, ETC. आप इन्हें इनकी particular वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं |


स्कैरवेयर – इसमें यूजर के पास मैसेज आता हैं कि यह फ्री एंटीवायरस हैं
और यूजर डाउनलोड करने के लिए लिंक पर क्लिक करे | यूजर जब उस लिंक
पर क्लिक करता हैं तो स्कैरवेयर यूजर के कंप्यूटर में आ जाता हैं |
यह computer को नुकसान पंहुचा सकता हैं |

भारत का इतिहास (सिन्धुसभ्यता)


                                                                Note’s on Indian history


                                                                     भारत का इतिहास
सिन्धु सभ्यता

सिन्धु सभ्यता दजला, फरात, सुमेरियन, व नील घाटी सभ्यता के समकालीन थी |

सिन्धू सभ्यता का काल –
1.        जॉन मार्शल के अनुसार – 3250 ईसा पूर्व से 2750 ईसा पूर्व |
2.        रेडियो कार्बन c-14 पद्धति के अनुसार 2300 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व |

सिन्धु सभ्यता की विशेषताएँ :-

v  सिन्धू सभ्यता नगरिय सभ्यता थी |
v  सिन्धु सभ्यता की विशेषता जल निकासी व्यवस्था थी |
v  सिन्धु सभ्यता को सर्व प्रथम हड्डपा नामक स्थान पर खोजा गया | इसी कारण जॉन मार्शल ने इसे हड्डपा सभ्यता कहा |
v  स्टुअर्ट पिग्गट ने मोहन जोदड़ो व हड्डपा को विशाल साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानिया बताया |
v  सिन्धू वासी द्रविड़ जाति के लोग थे |
v  सिन्धु सभ्यता में परिवार मातृसत्तात्मक थे |
v  सिन्धु वासी मातृदेवी की पूजा करते थे व गाय से अपरिचित थे |
v  सिन्धु वासियों ने सर्वप्रथम कपास की खेती की |
v  सिन्धुवासी सूत कातने व कपडे बुनने वाले संसार के प्रथम लोग थे |
v  सिन्धुवासीयों का प्रमुख व्यवसाय –
1.        व्यापार  2. कृषि  3. पशुपालन
v  सिन्धुवासी पशुपति की पूजा, योनी पूजा, सूर्य पूजा, वृक्ष पूजा, एवं नदी पूजा करते थे |
v  सिन्धुवासियो के मृत्यु के समय तीन प्रकार से अंतिम संस्कार किया जाता था |
1.        पूर्ण समाधी   2. आंशिक समाधी   3. दाहकर्म
v  सिन्धुसभ्यता में खोपड़ी की चिकित्सा के उदाहरण –“लोथल व कालीबंगा” से मिले हैं |
v  सिन्धुवासी घोड़े तथा तलवार से परिचित नहीं थे |
v  सिन्धुवासियो की लिपि “भाव चित्रात्मक” थी, जिसे दांयी से बांयी और लिखा जाता था |
v  सिन्धुवासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे |
v  सिन्धू सभ्यता में मंदिरों के अवशेष नहीं मिले हैं |
v  सिन्धू सभ्यता में ईट की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई 4:2:1 के अनुपात में थी |
v  सिन्धू सभ्यता ताम्र युगीन सभ्यता थी |
v  सिन्धूवासी कांसे के बर्तन बनाते थे |
v  ताम्बे का आयात खेतड़ी (राजस्थान) से होता था |
v  टिन का आयात अफगानिस्तान से होता था |
v  सिन्धु सभ्यता का पश्चिमी सिरा –सत्कागेडोर (पाकिस्तान), पूर्व सिरा – आलमगीरपुर (मेरठ), उतरी सिरा- मांडा (जम्मू व कश्मीर) व दक्षिणी सिरा – अहमदनगर (दाईमाबाद) |
v  सिन्धुसभ्यता की आकृति त्रिभुजाकार थी |
v  स्वास्तिक चिन्ह सिन्धु सभ्यता की देन हैं |
v  सिन्धु सभ्यता का अध्ययन “आध्य इतिहास” में किया जाता हैं |
v  सिन्धुवासी वस्तुओ का आदान – प्रदान “वस्तु विनिमय” के द्वारा होता था |
v  इनका प्रमुख खेल पासा होता था |
v  इनकी मुहरे पश्चिमी एशिया व मिश्र में मिली हैं |
v  इनकी लिपि की जानकारी मुहरो से मिलती हैं |
v  इस सभ्यता में सर्वाधिक वर्गाकार मुद्राए मिली हैं |
v  इसका प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह लोथल था , जो कि भोगवा नदी के किनारे हैं |
v  सिन्धु सभ्यता के लोग बत्तख को पवित्र मानते थे |